सबसे पहले मन्नू जी की इस पुस्तक ‘ एक कहानी यह भी ' को पढ़ते हुए यह स्पष्ट कर लिया जाना चाहिए कि यह पुस्तक दाम्पत्य के दैनंदिन के छलावों में मरती खपती एक ईर्ष्यालु स्त्री का सियापा नहीं, बल्कि इसमें एक स्त्री रचनाकार की बौद्धिक दृष्टि और उस दृष्टि का आलोक भी है जो एक ‘ सामान्य ‘ स्त्री का ‘ रचनाकार ' स्त्री में कायांतरण करता है।